वायू
गमन विद्या
एक प्रकार की आध्यात्मिक साधना और रहस्यमयी विद्या है, जो प्राचीन भारतीय योग, तंत्र और सिद्ध परंपराओं से
संबंधित है। इसे ऐसी शक्ति या विद्या के रूप में माना जाता है, जिसके माध्यम से साधक अपने शरीर को भौतिक सीमाओं से परे ले जाकर वायुमंडल
में गमन करने (उड़ने) में सक्षम हो जाता है।
वायू गमन विद्या की व्याख्या:
1. योग
और तंत्र का आधार:
यह विद्या योग के उन्नत स्तरों, जैसे
प्राणायाम, ध्यान और कुंडलिनी जागरण से जुड़ी है। इसमें साधक
अपने प्राण (जीवनी शक्ति) और मन को इस प्रकार नियंत्रित करता है कि वह भौतिक संसार
के नियमों से ऊपर उठ सके।
2. तत्व
सिद्धांत:
योग और तंत्र में पाँच महत्त्वपूर्ण तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) का
उल्लेख किया गया है। वायू तत्व का नियंत्रण प्राप्त कर लेने से, साधक को वायू में गमन करने की क्षमता प्राप्त होती है।
3. सिद्ध
पुरुषों की शक्ति:
प्राचीन काल में कई सिद्ध और योगी वायू गमन विद्या में पारंगत माने
जाते थे। इन्हें अपनी साधनाओं के बल पर इस प्रकार की अद्भुत शक्तियाँ प्राप्त थीं।
वायू गमन विद्या प्राप्त करने के
लिए:
1. प्राणायाम
और ध्यान:
प्राणायाम के माध्यम से प्राण शक्ति को जाग्रत करना और ध्यान द्वारा
मानसिक ऊर्जा को केंद्रित करना आवश्यक है।
2. कुंडलिनी
शक्ति जागरण:
कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के बाद, इसे
वायू तत्व पर केंद्रित किया जाता है, जिससे यह विद्या संभव
हो सकती है।
3. गुरु
का मार्गदर्शन:
वायू गमन जैसी रहस्यमयी विद्याओं को सीखने के लिए योग्य गुरु का
मार्गदर्शन अनिवार्य है। बिना गुरु की सहायता के यह विद्या खतरनाक हो सकती है।
वायू गमन विद्या का उद्देश्य:
- आत्मा
और शरीर की सीमाओं को भेदना।
- उच्च
आध्यात्मिक शक्तियों को प्राप्त करना।
- भौतिक
सीमाओं से परे जाकर ध्यान और साधना में सहायता प्राप्त करना।
आधुनिक दृष्टिकोण:
वायू
गमन विद्या को वैज्ञानिक दृष्टि से समझना कठिन है, और इसे
मुख्यतः आध्यात्मिक व रहस्यमयी परंपराओं के संदर्भ में ही देखा जाता है। इसे एक
प्रतीकात्मक और गूढ़ अभ्यास माना जा सकता है, जो साधक को
आत्म-साक्षात्कार और उच्च चेतना की ओर ले जाता है।
यदि
आप इसे लेकर और गहराई से जानना चाहते हैं, तो योग और तंत्र के
गूढ़ ग्रंथों का अध्ययन करें और किसी अनुभवी साधक से संपर्क करें।